जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं दर्द जिस में नहीं जिगर ही नहीं लोग कहते हैं वो भी हैं बेचैन कुछ ये बे-ताबियाँ इधर ही नहीं दिल कहाँ का जो दर्द-ए-दिल ही न हो सर कहाँ का जो दर्द-ए-सर ही नहीं बे-ख़बर जिन की याद में हैं हम ख़ैर से उन को कुछ ख़बर ही नहीं 'बेख़ुद'-ए-महव ओ शिकवा-हा-ए-इताब इस मनुश का तो वो बशर ही नहीं