जिस से भी हम ने दिल-लगी की है
By abdullah-minhaj-khanMay 18, 2024
जिस से भी हम ने दिल-लगी की है
उस ने ही मुझ से बे-रुख़ी की है
क्या बताएँ कि कैसे हैं हम लोग
हम ने अपनों से दुश्मनी की है
जब गुलों से हमारी बन न सकी
हम ने काँटों से दोस्ती की है
रोज़ इक इम्तिहान हो जैसे
ये कहानी भी ज़िंदगी की है
जो वफ़ा हम से कर नहीं पाए
हम ने उन की भी पैरवी की है
दर-ब-दर आज फिरते हैं हम जो
ये सज़ा भी तो 'इश्क़ ही की है
अपने क़िस्मत से जो लड़े 'मिनहाज'
इतनी हिम्मत कहाँ किसी की है
उस ने ही मुझ से बे-रुख़ी की है
क्या बताएँ कि कैसे हैं हम लोग
हम ने अपनों से दुश्मनी की है
जब गुलों से हमारी बन न सकी
हम ने काँटों से दोस्ती की है
रोज़ इक इम्तिहान हो जैसे
ये कहानी भी ज़िंदगी की है
जो वफ़ा हम से कर नहीं पाए
हम ने उन की भी पैरवी की है
दर-ब-दर आज फिरते हैं हम जो
ये सज़ा भी तो 'इश्क़ ही की है
अपने क़िस्मत से जो लड़े 'मिनहाज'
इतनी हिम्मत कहाँ किसी की है
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