जिस्म की रेत भी मुट्ठी से फिसल जाएगी मौत जब रूह लिए घर से निकल जाएगी सुब्ह आएगी जनाज़े में लिए सूरज को याद-ए-माज़ी में अगर रात पिघल जाएगी अग के बस में नहीं अपनी हिफ़ाज़त करना तो फ़क़त मोम जला आग भी जल जाएगी ख़ाना-ए-दिल में बसी चश्म-ए-लहू माँगें है सोचता था कि खिलौने से बहल जाएगी शाम जब लौट गई छोड़ के तन्हा तुझ को ता मुझे छोड़ के अब रात भी ढल जाएगी अश्क निकलेगा धुआँ बन के इसी महफ़िल से शम्अ' जब कूद के उस आग में जल जाएगी पाँव फिसला तो गिरेगी वो किसी दलदल में ज़िंदगी मौत नहीं है कि सँभल जाएगी