जिस्म से सारी रस्म करते हैं

By aditya-tiwari-shamsFebruary 22, 2025
जिस्म से सारी रस्म करते हैं
रूह से कुफ़्र से गुज़रते हैं
ऐसी वाबस्तगी भी ठीक नहीं
हम उसी और उसी पे मरते हैं


दोस्त जो आगे बढ़ गए मुझ से
सच कहूँ तो बहुत अखरते हैं
उन का और अपना मेल है ही नहीं
वो तो बद-नामियों से डरते हैं


एक से हैं हमारी ज़ीस्त-ओ-मकाँ
इन में तन्हा हमीं ठहरते हैं
क्या सबब है कि 'शम्स' सब साए
रौशनी में ही सिर्फ़ उभरते हैं


57548 viewsghazalHindi