जीते हैं ज़िंदगी को बड़ी सादगी से हम
By tariq-islam-kukraviMarch 1, 2024
जीते हैं ज़िंदगी को बड़ी सादगी से हम
डरते नहीं ख़ुदा के 'अलावा किसी से हम
क्यूँकर निबाह कर लें भला तीरगी से हम
जब फ़ैज़याब हो गए हैं रौशनी से हम
आएगा वक़्त जब भी तो कर के दिखाएँगे
ऐ आसमाँ बताएँ तुझे क्या अभी से हम
अपनी अना को बेच के दौलत कमाते गर
कैसे नज़र मिलाते भला ज़िंदगी से हम
शिकवा करें तो कैसे करें ये बताइये
जब दिल लगा के बैठे हैं इक अजनबी से हम
सब से दु'आ सलाम है जब अपना बरक़रार
क्यूँकर करें गुरेज़ बताओ किसी से हम
बे-बात यूँही रात से बिगड़ी है अपनी बात
रूठी है हम से ज़िंदगी और ज़िंदगी से हम
जब से सुना है आज वो तशरीफ़ लाएँगी
घर को सजा के बैठे हैं यारों तभी से हम
'तारिक़' ये अपना शौक़ है ख़िदमत अदब की है
रोज़ी नहीं कमाते कभी शा'इरी से हम
डरते नहीं ख़ुदा के 'अलावा किसी से हम
क्यूँकर निबाह कर लें भला तीरगी से हम
जब फ़ैज़याब हो गए हैं रौशनी से हम
आएगा वक़्त जब भी तो कर के दिखाएँगे
ऐ आसमाँ बताएँ तुझे क्या अभी से हम
अपनी अना को बेच के दौलत कमाते गर
कैसे नज़र मिलाते भला ज़िंदगी से हम
शिकवा करें तो कैसे करें ये बताइये
जब दिल लगा के बैठे हैं इक अजनबी से हम
सब से दु'आ सलाम है जब अपना बरक़रार
क्यूँकर करें गुरेज़ बताओ किसी से हम
बे-बात यूँही रात से बिगड़ी है अपनी बात
रूठी है हम से ज़िंदगी और ज़िंदगी से हम
जब से सुना है आज वो तशरीफ़ लाएँगी
घर को सजा के बैठे हैं यारों तभी से हम
'तारिक़' ये अपना शौक़ है ख़िदमत अदब की है
रोज़ी नहीं कमाते कभी शा'इरी से हम
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