जो एक शख़्स था मिस्ल-ए-बहार मेरे लिए

By abdullah-minhaj-khanMay 18, 2024
जो एक शख़्स था मिस्ल-ए-बहार मेरे लिए
बिछा रहा है वो काँटे हज़ार मेरे लिए
हर इक क़दम पे वही बेवफ़ाई करने लगा
जो कर रहा था ज़माना निसार मेरे लिए


वो चाहता है कि उस को बना लूँ मैं अपना
तभी तो करता है हर दम सिंगार मेरे लिए
ज़माना 'इश्क़ की वादी में खो गया है अब
नहीं है कोई भी अब ग़म-गुसार मेरे लिए


जहाँ पे जा के मिरे क़ल्ब को तसल्ली हो
बना गया है वो ऐसा हिसार मेरे लिए
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