जो हो नसीब तो गिर्दाब से निकल जाऊँ
By aftab-ranjhaMay 22, 2024
जो हो नसीब तो गिर्दाब से निकल जाऊँ
मैं अपने हल्क़ा-ए-अहबाब से निकल जाऊँ
न-जाने गर्दिश-ए-अय्याम क्यों नहीं रुकती
मैं गहरी नींद के इस ख़्वाब से निकल जाऊँ
मैं छुप के बैठा हूँ तन्हाई के समंदर में
सदा जो आए तह-ए-आब से निकल जाऊँ
मिरी तबी'अत-ए-मुज़्तर यहाँ न ठहरेगी
ऐ काश गोशा-ए-सीमाब से निकल जाऊँ
अगर वो चाहे तो इक पल रुकूँ नहीं 'बरहम'
मैं उस के शहर के हर बाब से निकल जाऊँ
मैं अपने हल्क़ा-ए-अहबाब से निकल जाऊँ
न-जाने गर्दिश-ए-अय्याम क्यों नहीं रुकती
मैं गहरी नींद के इस ख़्वाब से निकल जाऊँ
मैं छुप के बैठा हूँ तन्हाई के समंदर में
सदा जो आए तह-ए-आब से निकल जाऊँ
मिरी तबी'अत-ए-मुज़्तर यहाँ न ठहरेगी
ऐ काश गोशा-ए-सीमाब से निकल जाऊँ
अगर वो चाहे तो इक पल रुकूँ नहीं 'बरहम'
मैं उस के शहर के हर बाब से निकल जाऊँ
23019 viewsghazal • Hindi