जो सख़्त-तर है वो मुश्किल अभी नहीं आई

By akhtar-madhupuriMay 31, 2024
जो सख़्त-तर है वो मुश्किल अभी नहीं आई
बढ़ो कि सरहद-ए-मंज़िल अभी नहीं आई
हयात ढूँडेगी जा-ए-अमाँ न पाएगी
वो आज़माइश-ए-क़ातिल अभी नहीं आई


सिन-ए-बुलूग़ को पहुँचा नहीं जुनूँ शायद
कि क़ैद-ए-तौक़-ओ-सलासिल अभी नहीं आई
न जाने होंगे यहाँ क़त्ल कितने हक़ वाले
समझ में साज़िश-ए-बातिल अभी नहीं आई


ख़ुदा का शुक्र है बाक़ी है रौशनी की तमीज़
कि सुब्ह शाम के क़ाबिल अभी नहीं आई
किसी की याद में जलना मुझे नहीं आता
कि रुख़ पे रौशनी-ए-दिल अभी नहीं आई


पड़ाव डाल न 'अख़्तर' रहे सफ़र जारी
फ़सील-शाम मुक़ाबिल अभी नहीं आई
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