जो थे मुख़ालिफ़ हमीं से हम को वो देख कर के सँवर रहे हैं
By abdullah-minhaj-khanAugust 28, 2024
जो थे मुख़ालिफ़ हमीं से हम को वो देख कर के सँवर रहे हैं
वफ़ा की तल्क़ीन करने वाले वफ़ाएँ करने से डर रहे हैं
न मिलता उन को मगर मिला है यही तो क़ुदरत का फ़ैसला है
जो लोग करते थे कल तकब्बुर वो टूट कर अब बिखर रहे हैं
तुम्हीं ने कम-ज़र्फ़ कह के जिन को निकाल रक्खा था महफ़िलों से
वही सितारे जो कल थे डूबे वो आज देखो उभर रहे हैं
हज़ार वा'दे किए उन्हों ने मगर वो वा'दों पे आ न पाए
भरोसा जिन पे किया था हम ने ज़बाँ से अपनी मुकर रहे हैं
जो तोड़ते थे किसी के दिल को समझ के मिट्टी का इक खिलौना
ये कोई हम से बता रहा था वो आज घुट घुट के मर रहे हैं
सुनो ऐ 'मिनहाज' क़ैस-ओ-लीला की दास्तान-ए-वफ़ा यही है
वफ़ा के रस्ते पे मरने वाले यहाँ हमेशा अमर रहे हैं
वफ़ा की तल्क़ीन करने वाले वफ़ाएँ करने से डर रहे हैं
न मिलता उन को मगर मिला है यही तो क़ुदरत का फ़ैसला है
जो लोग करते थे कल तकब्बुर वो टूट कर अब बिखर रहे हैं
तुम्हीं ने कम-ज़र्फ़ कह के जिन को निकाल रक्खा था महफ़िलों से
वही सितारे जो कल थे डूबे वो आज देखो उभर रहे हैं
हज़ार वा'दे किए उन्हों ने मगर वो वा'दों पे आ न पाए
भरोसा जिन पे किया था हम ने ज़बाँ से अपनी मुकर रहे हैं
जो तोड़ते थे किसी के दिल को समझ के मिट्टी का इक खिलौना
ये कोई हम से बता रहा था वो आज घुट घुट के मर रहे हैं
सुनो ऐ 'मिनहाज' क़ैस-ओ-लीला की दास्तान-ए-वफ़ा यही है
वफ़ा के रस्ते पे मरने वाले यहाँ हमेशा अमर रहे हैं
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