जो तुम से छूटा तो फिर ख़ुद के इख़्तियार में था
By salim-saleemFebruary 28, 2024
जो तुम से छूटा तो फिर ख़ुद के इख़्तियार में था
मैं अपने चारों तरफ़ जब्र के हिसार में था
किसी ने ख़ाक उड़ाई थी अपने क़दमों की
फिर उस के बा'द मैं फैले हुए ग़ुबार में था
तमाम लोग पड़े थे फ़ना के पहरे में
मैं पिछली रात किसी शहर-ए-इंतिशार में था
तिरी तलाश में आख़िर ये दिन तमाम हुआ
जो रात आई तो फिर अपने इंतिज़ार में था
नया है साल तो चेहरा भी अब नया होगा
कि तेरा ज़िक्र तो गुज़री हुई बहार में था
मैं अपने चारों तरफ़ जब्र के हिसार में था
किसी ने ख़ाक उड़ाई थी अपने क़दमों की
फिर उस के बा'द मैं फैले हुए ग़ुबार में था
तमाम लोग पड़े थे फ़ना के पहरे में
मैं पिछली रात किसी शहर-ए-इंतिशार में था
तिरी तलाश में आख़िर ये दिन तमाम हुआ
जो रात आई तो फिर अपने इंतिज़ार में था
नया है साल तो चेहरा भी अब नया होगा
कि तेरा ज़िक्र तो गुज़री हुई बहार में था
22572 viewsghazal • Hindi