जुज़ ख़ुदा और कोई हामी-ओ-नासिर मिल जाए

By nomaan-shauqueFebruary 28, 2024
जुज़ ख़ुदा और कोई हामी-ओ-नासिर मिल जाए
लुत्फ़ आ जाए क़सम से जो वो काफ़िर मिल जाए
उस की मुश्किल से मैं वाक़िफ़ हूँ यही है मुश्किल
ये भी अब कह नहीं सकता कि बज़ाहिर मिल जाए


ये वही हैं कि जिन्हें फ़ख़्र है मिस्मारी पर
दिल नहीं तो कोई मस्जिद कोई मंदिर मिल जाए
शह्र घबराए हुए हैं नई वीरानी से
दश्त आवाज़ लगाते हैं मुसाफ़िर मिल जाए


ले कर आया कहाँ सदियों का सफ़र ला'नत है
कोह-ए-नूर आज भी उस का जिसे नादिर मिल जाए
चैन की साँस न ले पाएँगे सौ साल भी हम
हाँ बशर्ते कोई उस से बड़ा शातिर मिल जाए


70596 viewsghazalHindi