काम हिर्स-ओ-हवस का थोड़ी है
By ali-tasifJune 3, 2024
काम हिर्स-ओ-हवस का थोड़ी है
'इश्क़ हर इक के बस का थोड़ी है
वो मिरी दस्तरस में है लेकिन
मसअला दस्तरस का थोड़ी है
आह आज़ाद छोड़ दे कि मियाँ
ये परिंदा क़फ़स का थोड़ी है
ता-ब-कै सर पे आसमान उठाएँ
हिज्र यक दो नफ़स का थोड़ी है
अब तो बस सूर फूँकिए कि ये काम
अब सदा-ए-जरस का थोड़ी है
अपनी तन्हाई छोड़ दूँ क्यूँकर
साथ इक दो बरस का थोड़ी है
जस्त भरने का वक़्त है 'तासिफ़'
वक़्त ये पेश-ओ-पस का थोड़ी है
'इश्क़ हर इक के बस का थोड़ी है
वो मिरी दस्तरस में है लेकिन
मसअला दस्तरस का थोड़ी है
आह आज़ाद छोड़ दे कि मियाँ
ये परिंदा क़फ़स का थोड़ी है
ता-ब-कै सर पे आसमान उठाएँ
हिज्र यक दो नफ़स का थोड़ी है
अब तो बस सूर फूँकिए कि ये काम
अब सदा-ए-जरस का थोड़ी है
अपनी तन्हाई छोड़ दूँ क्यूँकर
साथ इक दो बरस का थोड़ी है
जस्त भरने का वक़्त है 'तासिफ़'
वक़्त ये पेश-ओ-पस का थोड़ी है
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