कभी-कभार 'अजब वक़्त आन पड़ता है

By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
कभी-कभार 'अजब वक़्त आन पड़ता है
न याद पड़ता है कोई न ध्यान पड़ता है
बरहनगी है कुछ ऐसी कि जिस्म ढाँपने को
ज़मीं के वास्ते कम आसमान पड़ता है


ये जानते हुए भी धूप में क़याम किया
ज़रा से फ़ासले पर साएबान पड़ता है
किसी ज़माने में मंज़िल के पास होता था
वो संग-ए-मील जो अब दरमियान पड़ता है


न कम समझ सफ़र-ए-'उम्र-ए-यक-नफ़स को 'जमाल'
इस एक राह में सारा जहान पड़ता है
73775 viewsghazalHindi