कभी कपड़े बदलता है कभी लहजा बदलता है

By wasim-nadirMarch 1, 2024
कभी कपड़े बदलता है कभी लहजा बदलता है
मगर इन कोशिशों से क्या कहीं शजरा बदलता है
परिंदा सोचता ये है रिहाई मिल गई मुझ को
सफ़ाई की ग़रज़ से जब कभी पिंजरा बदलता है


तुम्हारे बा'द अब जिस का भी जी चाहे मुझे रख ले
जनाज़ा अपनी मर्ज़ी से कहाँ कांधा बदलता है
बहुत ज़िद्दी मुसव्विर है नई पहचान की ख़ातिर
मिरी तस्वीर का हर रोज़ वो चेहरा बदलता है


मिरी आँखों की पहली आख़िरी हद है तिरा चेहरा
मैं वो पागल नहीं हूँ रोज़ जो रस्ता बदलता है
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