कभी मैं चलूँ कभी तू चले कभी बे-मज़ा ये सफ़र न हो

By achyutam-yadavOctober 12, 2024
कभी मैं चलूँ कभी तू चले कभी बे-मज़ा ये सफ़र न हो
किसे मंज़िलों की तलाश है हमें चलते रहने का डर न हो
कहाँ शब है और कहाँ सहर कहाँ धूप और कहाँ चाँदनी
मैं तिरे गुमान में ही रहूँ मुझे इन सभी की ख़बर न हो


ये जो आँसुओं का लिफ़ाफ़ा है कई दर्द इस में पले बढ़े
कभी झाँक ले मिरी आँख में तुझे ए'तिबार अगर न हो
न 'अयाँ हुईं मिरी ख़ामियाँ न 'अयाँ हुईं तिरी ख़ामियाँ
कोई करना चाहे भी गर 'अयाँ तो सदा में उस की असर न हो


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