क़ाबिल-ए-रश्क ज़ात फूलों की

By abdur-rauf-anjumMarch 27, 2021
क़ाबिल-ए-रश्क ज़ात फूलों की
ख़ूब है काएनात फूलों की
ख़ुशबुओं का सफ़र तवील मगर
मुख़्तसर है हयात फूलों की


कर चुके हैं वुज़ू वो शबनम से
हो रही है सलात फूलों की
सो गए हैं लिपट के काँटों से
क्या क़यामत है रात फूलों की


है असीर-ए-क़फ़स के होंटों पर
ज़िक्र कलियों का बात फूलों की
उन के हँसने से खिल गए ग़ुंचे
उन के दम से हयात फूलों की


चंद लम्हों में खिल के मुरझाएँ
ज़िंदगी बे-सबात फूलों की
सारी महफ़िल महक गई 'अंजुम'
शे'र हैं या बरात फूलों की


है ग़ज़ल में चमक भी 'अंजुम' की
और महक साथ साथ फूलों की
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