क़दम क़दम पे जो अपना निशाँ बनाते हैं
By jawed-manzarNovember 2, 2020
क़दम क़दम पे जो अपना निशाँ बनाते हैं
ज़मीं पे चलते हैं और कहकशाँ बनाते हैं
हर एक लम्हा वो तूफ़ान पर नज़र रक्खें
कनार-ए-बहर जो अपना मकाँ बनाते हैं
बुरी नज़र न कोई सरहदों से पार उठे
हम अब वतन के लिए पासबाँ बनाते हैं
न बू-ए-गुल न अना की रमक़ मिली उन में
जो वहशतों का सदा आशियाँ बनाते हैं
हमारे बाद की नस्लें बनेंगी क्या 'मंज़र'
ज़मीं को बातों में हम आशियाँ बनाते हैं
ज़मीं पे चलते हैं और कहकशाँ बनाते हैं
हर एक लम्हा वो तूफ़ान पर नज़र रक्खें
कनार-ए-बहर जो अपना मकाँ बनाते हैं
बुरी नज़र न कोई सरहदों से पार उठे
हम अब वतन के लिए पासबाँ बनाते हैं
न बू-ए-गुल न अना की रमक़ मिली उन में
जो वहशतों का सदा आशियाँ बनाते हैं
हमारे बाद की नस्लें बनेंगी क्या 'मंज़र'
ज़मीं को बातों में हम आशियाँ बनाते हैं
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