कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

By bharat-bhushan-pantOctober 28, 2020
कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
पहन लेता हूँ जब दस्तार तो सर भूल जाता हूँ
वगर्ना तो मुझे सब याद रहता है सिवा इस के
कहाँ हूँ कौन हूँ क्यूँ हूँ मैं अक्सर भूल जाता हूँ


मिरे इस हाल से गुमराह हो जाते हैं रहबर भी
मैं अक्सर रास्ते में अपना ही घर भूल जाता हूँ
दिखाता फिर रहा हूँ सब को अपने ज़ख़्म-ए-सर लेकिन
मिरे हाथों में भी है एक पत्थर भूल जाता हूँ


निकल जाता हूँ ख़ुद अपने हिसार-ए-ज़ात से बाहर
मैं अक्सर पाँव फैलाने में चादर भूल जाता हूँ
कभी जब सोचने लगता हूँ पस-ए-मंज़र के बारे में
तो मेरे सामने हो कोई मंज़र भूल जाता हूँ


कभी तो इतना बढ़ जाती है मेरी प्यास की शिद्दत
मिरे चारों तरफ़ है इक समुंदर भूल जाता हूँ
92517 viewsghazalHindi