कहिए गर रब्त मुद्दई से है कहते हैं दोस्ती तुझी से है देखिए आगे आगे क्या कुछ हो दिल की हरकत ये कुछ अभी से है उस की उल्फ़त में जीते-जी मरना फ़ाएदा ये भी ज़िंदगी से है ज़िद है गर है तो हो सभी के साथ या न मिलने की ज़िद मुझी से है ख़ौफ़ से तुम से कह नहीं सकते दिल में इक आरज़ू कभी से है मुझ से पूछो हो किस से उल्फ़त है तुम समझते नहीं किसी से है रंजिश-ए-ग़ैर से नहीं मतलब काम हम को तिरी ख़ुशी से है इस क़दर आप हम पे ज़ुल्म करें इस का इंसाफ़ आप ही से है रश्क दुश्मन न सह सकेगा 'निज़ाम' ये भी नाचार अपने जी से है