कहने को हो चुका हूँ मैं फ़ारिग़-ब-रोज़गार

By abdussalam-asimMay 19, 2024
कहने को हो चुका हूँ मैं फ़ारिग़-ब-रोज़गार
आलाम-ए-रोज़गार से मुमकिन नहीं फ़रार
जिस दिल पे सिर्फ़ मेरा ही हक़ होना चाहिए
वो अब भी मेरे पास है पर वक़्फ़-ए-इंतिशार


कल भी था और कल भी रहेगा बहर-लिहाज़
राह-ए-सफ़र का हिस्सा चमन-ज़ार ख़ार-ज़ार
मौसम है फ़स्ल-ए-गुल का मगर दिल के बाग़ में
हैं टहनियाँ उदास तो शाख़ें हैं बे-बहार


ख़ाज़िन हूँ नज़्म-ओ-नस्र के सरमाए का मगर
मुमकिन नहीं है मुझ से किताबों का कारोबार
नक़्द-ओ-नज़र से लेता है 'आसिम' भी शाज़ काम
रखता नहीं कभी कोई सौदा मगर उधार


94389 viewsghazalHindi