कैसे आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा पाले
By ali-tasifJune 3, 2024
कैसे आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा पाले
पूछ उस से जो भरे घर को अकेला पाले
एक ही जस्त में उस पार न हो जाऊँ अगर
कहना दुनिया से मिरे नाम का कुत्ता पाले
तू मिरी वज़' नहीं मेरी तरफ़ देख बग़ौर
मैं वो सहरा हूँ कि जिस ने कई दरिया पाले
कार-ए-मक़्सूम बहर-तौर यही लगता है
तिफ़्ल-ए-मुफ़्लिस न पसंदीदा खिलौना पा ले
ग़म-ए-‘उक़्बा ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दुनिया-दारी
इस क़दर रोग कोई कैसे ख़ुदाया पाले
मैं समझता हूँ सुख़नवर को यही ज़ेबा है
दर्द भी अपने सहे ज़ख़्म भी अपना पाले
'ऐन मुमकिन है किसी रोज़ 'अली-तासिफ़' भी
ना-गहाँ ख़ुद को सर-ए-राह दोबारा पा ले
पूछ उस से जो भरे घर को अकेला पाले
एक ही जस्त में उस पार न हो जाऊँ अगर
कहना दुनिया से मिरे नाम का कुत्ता पाले
तू मिरी वज़' नहीं मेरी तरफ़ देख बग़ौर
मैं वो सहरा हूँ कि जिस ने कई दरिया पाले
कार-ए-मक़्सूम बहर-तौर यही लगता है
तिफ़्ल-ए-मुफ़्लिस न पसंदीदा खिलौना पा ले
ग़म-ए-‘उक़्बा ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दुनिया-दारी
इस क़दर रोग कोई कैसे ख़ुदाया पाले
मैं समझता हूँ सुख़नवर को यही ज़ेबा है
दर्द भी अपने सहे ज़ख़्म भी अपना पाले
'ऐन मुमकिन है किसी रोज़ 'अली-तासिफ़' भी
ना-गहाँ ख़ुद को सर-ए-राह दोबारा पा ले
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