कार-ए-मुश्किल ही किया दुनिया में गर मैं ने किया पर न उस बे-रहम के दिल में गुज़र मैं ने किया दिल में लैला-ए-तमन्ना पाँव छलनी तेज़ धूप किस क़यामत का सफ़र था जो सफ़र मैं ने किया तेरा अपना रास्ता था मेरा अपना रास्ता इस पे भी ऐ ज़िंदगी तुझ को बसर मैं ने किया मुस्कुरा कर उस ने जब बाहें गले में डाल दीं फिर जो उस से रंज था सर्फ़-ए-नज़र मैं ने किया ज़िंदा थे दुश्मन तो मुझ को बाज़ुओं पे नाज़ था आँख को उन के गुज़र जाने पे तर मैं ने किया चश्म-ए-कम से देखता था मुझ को आख़िर एक दिन उस के ज़ोम-ए-ख़ाम को ज़ेर-ओ-ज़बर मैं ने किया हर्फ़ उस के क़ामत-ए-तहसीं पे सजते ही गए 'शाहिद' उन को इस तरह हर्फ़-ए-हुनर मैं ने किया