कौन फिर होश में आए किसे फिर होश रहे जब तिरी मस्त नज़र मय-कदा-बर-दोश रहे ज़ुल्फ़ आशुफ़्ता नज़र मस्त दमकते रुख़्सार यूँ जो आ जाओ तो फिर किस को भला होश रहे ये है मय-ख़ाना-ए-इश्क़ इस का यही है दस्तूर होश वाला भी यहाँ आए तो बेहोश रहे भूल कर भी न चखा क़तरा-ए-मय हम ने कभी तेरी महफ़िल में मगर सूरत-ए-मय-नोश रहे जाने क्या बात थी क्या हाल था मेरा 'अज़्मत' वो मुझे देखने आए भी तो ख़ामोश रहे