कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए मौत आती है अजल को याँ तलक आते हुए आतिश-ए-ख़ुर्शीद से उठता नहीं देखा धुआँ आ खड़े हो बाम पर तुम बाल सुखलाते हुए चाक आता है नज़र पैरहन-ए-सुब्ह-ए-बहार किस शहीद-ए-नाज़ को देखा है कफ़नाते हुए वो न जागे रात को और ज़िद से बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता की बज गया आख़िर गजर ज़ंजीर खड़काते हुए