ख़ाक मेरी बिखर गई है क्या आसमाँ तक नज़र गई है क्या किस लिए तुम उदास फिरते हो दिल से दुनिया उतर गई है क्या अपनी मर्ज़ी से दर-ब-दर हूँ मैं तू बता अपने घर गई है क्या ऐ सबा जिस तरफ़ है फूल मिरा ये बता तू उधर गई है क्या ये जो दिन में बदल गई है रात ज़ुल्फ़ तेरी सँवर गई है क्या तेरे माथे पे क्यों पसीना है ख़्वाब में तू भी डर गई है क्या इस तरह क्यों उदास बैठे हो कोई दिल में उतर गई है क्या सारी दुनिया उलट गई मेरी तू इधर से उधर गई है क्या ये जो मंज़िल है पाँव में 'ख़ालिद' जुस्तुजू काम कर गई है क्या