ख़ाक थी ख़ाक-दान में क्या था हम से पहले जहान में क्या था जाँ हथेली पे थी पतंगों की जाने इस शम्अ-दान में क्या था अब तो आसेब है मिरे घर में क़ब्ल इस के मकान में क्या था खींचता था वो नक़्श-ए-पा हम को नक़्श क्या था निशान में क्या था देवता कह रहे थे लोग जिसे वो हमारी ज़बान में क्या था उम्र भर मिल सके न हम दोनों वसवसा दरमियान में क्या था कैसा निकला है ऐ 'फ़िदा' तू भी और हमारे गुमान में क्या था