वफ़ा-शिआ'र नज़ारों की बात करते हैं
By khalid-kotiMay 14, 2021
वफ़ा-शिआ'र नज़ारों की बात करते हैं
ख़िज़ाँ में रह के बहारों की बात करते हैं
न आसरों न सहारों की बात करते हैं
नक़ीब-ए-वक़्त वक़ारों की बात करते हैं
निज़ाम-ए-अर्श पे जिन को यक़ीं नहीं वो भी
ज़मीं ये चाँद सितारों की बात करते हैं
ये तुंद-ओ-तेज़ हवाएँ ये ज़ोर तूफ़ाँ का
भँवर के बीच किनारों की बात करते हैं
जिन्हों ने देखा जलाल-ओ-जमाल का मंज़र
वो दिल-नवाज़ नज़ारों की बात करते हैं
सुकून जिन को मयस्सर नहीं ज़माने में
वो बे-क़रार क़रारों की बात करते हैं
हवस-परस्त ज़माने में आप ऐ 'ख़ालिद'
ख़ुदा के शुक्र-गुज़ारों की बात करते हैं
ख़िज़ाँ में रह के बहारों की बात करते हैं
न आसरों न सहारों की बात करते हैं
नक़ीब-ए-वक़्त वक़ारों की बात करते हैं
निज़ाम-ए-अर्श पे जिन को यक़ीं नहीं वो भी
ज़मीं ये चाँद सितारों की बात करते हैं
ये तुंद-ओ-तेज़ हवाएँ ये ज़ोर तूफ़ाँ का
भँवर के बीच किनारों की बात करते हैं
जिन्हों ने देखा जलाल-ओ-जमाल का मंज़र
वो दिल-नवाज़ नज़ारों की बात करते हैं
सुकून जिन को मयस्सर नहीं ज़माने में
वो बे-क़रार क़रारों की बात करते हैं
हवस-परस्त ज़माने में आप ऐ 'ख़ालिद'
ख़ुदा के शुक्र-गुज़ारों की बात करते हैं
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