ख़मोशी भाग निकली है मकाँ से
By salim-saleemFebruary 28, 2024
ख़मोशी भाग निकली है मकाँ से
तिरी आवाज़ आई थी कहाँ से
मिरी मिट्टी को आख़िर क्या हुआ है
उलझती जा रही है आसमाँ से
'अजब इक रब्त है इस वाक़'ए का
किसी भूली हुई सी दास्ताँ से
किनारों से मैं बढ़ता जा रहा हूँ
सो मुझ को खींच लो तुम दरमियाँ से
तिरी आवाज़ आई थी कहाँ से
मिरी मिट्टी को आख़िर क्या हुआ है
उलझती जा रही है आसमाँ से
'अजब इक रब्त है इस वाक़'ए का
किसी भूली हुई सी दास्ताँ से
किनारों से मैं बढ़ता जा रहा हूँ
सो मुझ को खींच लो तुम दरमियाँ से
90664 viewsghazal • Hindi