ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए में छुपा के रखता हूँ
By ajmal-siddiquiMay 30, 2024
ख़त जो तेरे नाम लिखा
तकिए में छुपा के रखता हूँ
जाने किस उम्मीद पे ये ता'वीज़ दबा के रखता हूँ
ताकि इक इक लफ़्ज़ मिरे लहजे में तुझ से बात करे
ख़त के हर हर लफ़्ज़ को ख़त पर ख़ूब पढ़ा के रखता हूँ
आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
आस बिखरने पर सब चीज़ें ख़ुद ही उठा के रखता हूँ
एक ज़रा सा दर्द मिला और काग़ज़ काले कर डाले
एक ज़रा से हिज्र पे इक हंगामा मचा के रखता हूँ
अम्बर
मुश्कीं
रूह-ए-बहाराँ जान-अफ़ज़ा और मौज-ए-बहिश्त
इक तेरी निस्बत से क्या क्या नाम सबा के रखता हूँ
तकिए में छुपा के रखता हूँ
जाने किस उम्मीद पे ये ता'वीज़ दबा के रखता हूँ
ताकि इक इक लफ़्ज़ मिरे लहजे में तुझ से बात करे
ख़त के हर हर लफ़्ज़ को ख़त पर ख़ूब पढ़ा के रखता हूँ
आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
आस बिखरने पर सब चीज़ें ख़ुद ही उठा के रखता हूँ
एक ज़रा सा दर्द मिला और काग़ज़ काले कर डाले
एक ज़रा से हिज्र पे इक हंगामा मचा के रखता हूँ
अम्बर
मुश्कीं
रूह-ए-बहाराँ जान-अफ़ज़ा और मौज-ए-बहिश्त
इक तेरी निस्बत से क्या क्या नाम सबा के रखता हूँ
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