ख़्वाब सुनने से गए इश्क़ बताने से गए ज़िंदगी हम तिरी तौक़ीर बढ़ाने से गए घर के आँगन में लगा पेड़ कटा है जब से हम तिरी बात परिंदों को सुनाने से गए जुज़ तुझे देखने के और नहीं था कोई काम ये अलग बात किसी और बहाने से गए जब से वहशत ने नई शक्ल निकाली अपनी हम जुनूँ-ज़ाद किसी दश्त में जाने से गए वक़्त पर उस ने पहुँचने का कहलवाया था हम ही ताख़ीर से पहुँचे सो ठिकाने से गए आसमाँ रोज़ मिरे ख़्वाब में आ जाता है हम ख़यालों में हसीं चाँद बनाने से गए दिल की तन्हाई में वहशत की दराड़ें हैं 'सईद' हम दराड़ों में तिरा हिज्र बसाने से गए