ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम शायद यही सबब है कि तन्हा रहे हो तुम अपने से कोई बात छुपाई नहीं कभी ये भी फ़रेब ख़ुद को बहुत दे चुके हो तुम पूछा है अपने आप से मैं ने हज़ार बार मुझ को बताओ तो सही क्या चाहते हो तुम ख़ाली बरामदों ने मुझे देख कर कहा क्या बात है उदास से कुछ लग रहे हो तुम घर के लबों पे आज तक आया न ये सवाल हो कर कहाँ से आए हो क्या थक गए हो तुम