ख़ुद से कितना किया दग़ा मैं ने

By akhtar-saeedJune 1, 2024
ख़ुद से कितना किया दग़ा मैं ने
अभी सीखी नहीं वफ़ा मैं ने
निकला चूहा पहाड़ को खोदा
जो किया जो कहा सुना मैं ने


खोलिए क्यूँ दुखों के दफ़्तर को
सोचना बंद कर दिया मैं ने
हाँ लगाया है ज़िक्र 'अज़्मत पर
ज़ोर से एक क़हक़हा मैं ने


हासिल-ए-ज़ीस्त है कि देखा है
सुम्बुल-ओ-सब्ज़ा-ओ-सबा मैं ने
ज़िंदगी ज़हर था उसे सुक़रात
जुरआ' जुरआ' मगर पिया मैं ने


छुप के बैठा हूँ शर्मसारी से
का'बे से दूर ली है जा मैं ने
ये तो तज़लील है शहादत की
कभी माँगा न ख़ूँ-बहा मैं ने


जब बढ़ी और शर्म-ए-उर्यानी
ओढ़ ली ख़ाक की क़बा मैं ने
अपने दिल को तो सी नहीं सकता
अपने होंटों को सी लिया मैं ने


ख़ौफ़ से भाग निकला मज्लिस से
जब सुना ज़िक्र-ए-कर्बला मैं ने
44107 viewsghazalHindi