ख़ुदा ही आप न जब तक ज़मीं पे उतरेगा
By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
ख़ुदा ही आप न जब तक ज़मीं पे उतरेगा
तो कौन पूरा किसी के यक़ीं पे उतरेगा
ये सैल-ए-अश्क भी अपना है आँख भी अपनी
खड़े रहो कि ये दरिया यहीं पे उतरेगा
भरोसा कोई नहीं है किसी मुसाफ़िर का
जहाँ भी रेल रुकेगी वहीं पे उतरेगा
चले तो हो सफ़र-ए-‘इश्क़ पर ख़याल रहे
कहीं चढ़ेगा ये दरिया कहीं पे उतरेगा
तमाम ख़ाक-नशीं ज़ेर-ए-ख़ाक होंगे मगर
लहू का रंग तिरी आस्तीं पे उतरेगा
यहाँ भरे हुए बैठे हैं सब बंधे हाथों
सो अब ये ग़ुस्सा तिरे जा-नशीं पे उतरेगा
'जमाल' ख़ित्ता-ए-दिल हो भी जाए गर हमवार
कोई जहाज़ न इस सरज़मीं पे उतरेगा
तो कौन पूरा किसी के यक़ीं पे उतरेगा
ये सैल-ए-अश्क भी अपना है आँख भी अपनी
खड़े रहो कि ये दरिया यहीं पे उतरेगा
भरोसा कोई नहीं है किसी मुसाफ़िर का
जहाँ भी रेल रुकेगी वहीं पे उतरेगा
चले तो हो सफ़र-ए-‘इश्क़ पर ख़याल रहे
कहीं चढ़ेगा ये दरिया कहीं पे उतरेगा
तमाम ख़ाक-नशीं ज़ेर-ए-ख़ाक होंगे मगर
लहू का रंग तिरी आस्तीं पे उतरेगा
यहाँ भरे हुए बैठे हैं सब बंधे हाथों
सो अब ये ग़ुस्सा तिरे जा-नशीं पे उतरेगा
'जमाल' ख़ित्ता-ए-दिल हो भी जाए गर हमवार
कोई जहाज़ न इस सरज़मीं पे उतरेगा
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