खुलता है किसी पर तो किसी पर नहीं खुलता
By ali-tasifJune 3, 2024
खुलता है किसी पर तो किसी पर नहीं खुलता
हमराज़ 'अजब है कि हमी पर नहीं खुलता
तुम साथ हो मेरे कि मिरे साथ नहीं हो
ये कैसा इज़ाफ़ा है कमी पर नहीं खुलता
इक आह भी होती है पस-ए-ज़ब्त-ओ-पस-ए-लब
ख़ामोश पड़े रहना सभी पर नहीं खुलता
होने का गुमाँ है कि न होने का यक़ीं है
औरों पे तो खुलता है मुझी पर नहीं खुलता
गिर्ये की सुहूलत जो खुली है तो खुला है
ग़म किस पे खुले वो जो ग़मी पर नहीं खुलता
खुलने की कहानी का दर-ओ-बस्त भी अज़-ख़ुद
जो फूल पे खुलता है कली पर नहीं खुलता
सरमस्ती-ओ-सरशारी-ओ-सर-अफ़राज़ी खुले क्या
जब मेरे तख़य्युल का कोई पर नहीं खुलता
हमराज़ 'अजब है कि हमी पर नहीं खुलता
तुम साथ हो मेरे कि मिरे साथ नहीं हो
ये कैसा इज़ाफ़ा है कमी पर नहीं खुलता
इक आह भी होती है पस-ए-ज़ब्त-ओ-पस-ए-लब
ख़ामोश पड़े रहना सभी पर नहीं खुलता
होने का गुमाँ है कि न होने का यक़ीं है
औरों पे तो खुलता है मुझी पर नहीं खुलता
गिर्ये की सुहूलत जो खुली है तो खुला है
ग़म किस पे खुले वो जो ग़मी पर नहीं खुलता
खुलने की कहानी का दर-ओ-बस्त भी अज़-ख़ुद
जो फूल पे खुलता है कली पर नहीं खुलता
सरमस्ती-ओ-सरशारी-ओ-सर-अफ़राज़ी खुले क्या
जब मेरे तख़य्युल का कोई पर नहीं खुलता
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