खून पसीने में हो कर तर बैठ गयाइंसाँ है मज़दूर भी थककर बैठ गयागुस्से में वो नाक फुलाकर बैठ गयामेरा उस के बाद मुक़द्दर बैठ गयाराज़ की बातें ग़ैरों के मुंह सुन करलम्हा भर को मैं चकराकर बैठ गयाजितने मुंह उससे भी ज़ियादा बातें थीवो थोड़ा क्या मेरे बराबर बैठ गयाअपना बोझ भरम ऐसे रक्खा हमनेचुप होकर आँखों में सागर बैठ गयारसमन हमने उसको इज़्ज़त बख्शी थीऔर वह सीधा सर के ऊपर बैठ गयामेरे दिल से तुमको कौन निकालेगाअब दरया में जैसे पत्थर बैठ गयाआज मिरे घर क्या तुम आने वाले होसुब्ह सवेरे कागा छत पर बैठ गयाऐसे मंज़िल पाने के हालात बनेबीच सफर में अरशद रहबर बैठ गया©अरशद रसूल बदायूंनी