ख़ुशियाँ नहीं तो क्यों कहूँ आज़ार भी नहीं
By shahzad-niazFebruary 29, 2024
ख़ुशियाँ नहीं तो क्यों कहूँ आज़ार भी नहीं
घर-बार क्या कहूँ कोई दिलदार भी नहीं
आबाद महफ़िलें रहीं वक़्त-ए-उरूज था
सुनने को बात अब कोई ग़म-ख़्वार भी नहीं
था महवशों का साथ तो गुल-पाशियाँ रहीं
तन्हा हुए तो मिलता कोई ख़ार भी नहीं
ग़म अपना जिस से बाँटते तन्हाइयों में हम
चेहरा-शनास अब कोई दीवार भी नहीं
जो दिल में आ गया वही 'शहज़ाद' लिख दिया
आसाँ नहीं तो शा'इरी दुश्वार भी नहीं
घर-बार क्या कहूँ कोई दिलदार भी नहीं
आबाद महफ़िलें रहीं वक़्त-ए-उरूज था
सुनने को बात अब कोई ग़म-ख़्वार भी नहीं
था महवशों का साथ तो गुल-पाशियाँ रहीं
तन्हा हुए तो मिलता कोई ख़ार भी नहीं
ग़म अपना जिस से बाँटते तन्हाइयों में हम
चेहरा-शनास अब कोई दीवार भी नहीं
जो दिल में आ गया वही 'शहज़ाद' लिख दिया
आसाँ नहीं तो शा'इरी दुश्वार भी नहीं
16927 viewsghazal • Hindi