ख़्वाब में हाथ छुड़ाती हुई तक़दीर का दुख

By wasim-nadirMarch 1, 2024
ख़्वाब में हाथ छुड़ाती हुई तक़दीर का दुख
आँख से लिपटा है अब तक उसी ता'बीर का दुख
क़ैद-ख़ाने में यही सोच के वापस आया
मुझ को मा'लूम है तन्हा पड़ी ज़ंजीर का दुख


कोशिशें कर के बहर-हाल मुसव्विर हारा
शोख़ रंगों में छुपा ही नहीं तस्वीर का दुख
मशवरा ख़ाना-ख़राबों से ही करना बेहतर
एक खंडर ही बता सकता है ता'मीर का दुख


महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न युँही रहे बाग़-ओ-बहार
नस्ल-दर-नस्ल चले 'मीर-तक़ी-मीर' का दुख
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