ख़्वाहिश का बोझ रख लिया दिल की असास पर

By wasim-nadirMarch 1, 2024
ख़्वाहिश का बोझ रख लिया दिल की असास पर
ये काम भी किया है तिरे इल्तिमास पर
पानी की चंद बूँदें मुझे माँगनी पड़ीं
शर्मिंदगी हुई है बहुत अपनी प्यास पर


लफ़्ज़ों में झिलमिलाते हुए ग़म नहीं हैं ये
जुगनू टिके हुए हैं ग़ज़ल के लिबास पर
नाकाम है ये कब से मगर टूटती नहीं
हैरान होता रहता हूँ मैं दिल की आस पर


दिल सोच में पड़ा है कि वो कैसे होंट थे
जिन के निशान उभरे हैं अब तक गिलास पर
64798 viewsghazalHindi