किस हथेली पे पा-पोश सींचे गए किस कहानी को बे-नाम रखा गया
By aamir-suhailApril 21, 2024
किस हथेली पे पा-पोश सींचे गए किस कहानी को बे-नाम रखा गया
ज़ानू-ए-दिल पे कल शब बड़ी भीड़ थी जिस के बरते पे अंजाम रखा गया
हम शुरूअ' मोहब्बत से नादार थे अपनी आँखों से होंटों से बेज़ार थे
हम से क्या पूछते हो लहू की खनक जिस के रेशों में इबहाम रखा गया
इंतिहाओं में तुझ से अलग हो गए इब्तिदाओं से ही सहल-अंदाज़ थे
'उम्र के रेग-ज़ारों से गुज़रे नहीं और शानों पे इल्ज़ाम रखा गया
रौनक़ों में तमाशा बने रात दिन ख़ल्वती थे सदा ख़ल्वती ही रहे
मुश्क की नाँद कूल्हे पे देखी गई और पहलू में इल्हाम रखा गया
ऐसी बे-वुक़'अती से तराशा गया अपने होने पे नादिम रहे 'उम्र भर
ख़ुश्क मिट्टी के ढेलों को यकजा किया आँधियों के तले नाम रखा गया
रस-भरी कुहनियों को निचोड़ा गया शहर के चौक में ला के छोड़ा गया
जिस्म के ढीले तारों को कसते रहे और भीतर में कोहराम रखा गया
गोलियों से उधड़ते रहे नाम भी बाम-ओ-दर की हिकायत अधूरी रही
बाम-ओ-दर की हिकायत कि जिस के एवज़ बख़्त में दाना-ओ-दाम रखा गया
जाम में तुंद पानी भरा देखिए अब चराग़ों की लौ को मिरा देखिए
सुर्ख़ क़ालीन और इस पे बिछती ग़ज़ल जिस के ज़ानू पे एहराम रखा गया
ज़ानू-ए-दिल पे कल शब बड़ी भीड़ थी जिस के बरते पे अंजाम रखा गया
हम शुरूअ' मोहब्बत से नादार थे अपनी आँखों से होंटों से बेज़ार थे
हम से क्या पूछते हो लहू की खनक जिस के रेशों में इबहाम रखा गया
इंतिहाओं में तुझ से अलग हो गए इब्तिदाओं से ही सहल-अंदाज़ थे
'उम्र के रेग-ज़ारों से गुज़रे नहीं और शानों पे इल्ज़ाम रखा गया
रौनक़ों में तमाशा बने रात दिन ख़ल्वती थे सदा ख़ल्वती ही रहे
मुश्क की नाँद कूल्हे पे देखी गई और पहलू में इल्हाम रखा गया
ऐसी बे-वुक़'अती से तराशा गया अपने होने पे नादिम रहे 'उम्र भर
ख़ुश्क मिट्टी के ढेलों को यकजा किया आँधियों के तले नाम रखा गया
रस-भरी कुहनियों को निचोड़ा गया शहर के चौक में ला के छोड़ा गया
जिस्म के ढीले तारों को कसते रहे और भीतर में कोहराम रखा गया
गोलियों से उधड़ते रहे नाम भी बाम-ओ-दर की हिकायत अधूरी रही
बाम-ओ-दर की हिकायत कि जिस के एवज़ बख़्त में दाना-ओ-दाम रखा गया
जाम में तुंद पानी भरा देखिए अब चराग़ों की लौ को मिरा देखिए
सुर्ख़ क़ालीन और इस पे बिछती ग़ज़ल जिस के ज़ानू पे एहराम रखा गया
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