किस को है वक़्त कि पूछे वो हक़ीक़त तेरी

By abdullah-minhaj-khanMay 18, 2024
किस को है वक़्त कि पूछे वो हक़ीक़त तेरी
जानता कौन नहीं अब ये मुसीबत तेरी
ख़ुश-नसीबी है जो रहते हैं तिरे पास अक्सर
इस बहाने उन्हें होती है ज़ियारत तेरी


तेरी ज़ुल्फ़ों से कोई ग़ैर उलझता है अगर
आँखें हो जाती हैं तब मिस्ल-ए-क़यामत तेरी
मुझ को अफ़सोस है तू ने मुझे समझा ही नहीं
मुझ को हर मोड़ पे पेश आई ज़रूरत तेरी


अब तो एहसास ये होता है कि हर पल ऐ दोस्त
ख़ाक में मुझ को मिला डालेगी नफ़रत तेरी
राज़ मैं तेरा सँभालूँगा हूँ ज़िंदा जब तक
मेरी आँखों में जो रक्खी है अमानत तेरी


वो भी कहता है ये 'मिनहाज' बिछड़ कर मुझ से
ख़्वाब में रोज़ नज़र आती है सूरत तेरी
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