किसी भी दश्त किसी भी नगर चला जाता
By jamal-ehsaniNovember 2, 2020
किसी भी दश्त किसी भी नगर चला जाता
मैं अपने साथ ही रहता जिधर चला जाता
वो जिस मुंडेर पे छोड़ आया अपनी आँखें मैं
चराग़ होता तो लौ भूल कर चला जाता
उसे बचा लिया आवारगान-ए-शाम ने आज
वगर्ना सुब्ह का भूला तो घर चला जाता
मिरा मकाँ मिरी ग़फ़लत से बच गया वर्ना
कोई चुरा के मिरे बाम-ओ-दर चला जाता
अगर मैं खिड़कियाँ दरवाज़े बंद कर लेता
तो घर का भेद सर-ए-रहगुज़र चला जाता
थकन बहुत थी मगर साया-ए-शजर में 'जमाल'
मैं बैठता तो मिरा हम-सफ़र चला जाता
मैं अपने साथ ही रहता जिधर चला जाता
वो जिस मुंडेर पे छोड़ आया अपनी आँखें मैं
चराग़ होता तो लौ भूल कर चला जाता
उसे बचा लिया आवारगान-ए-शाम ने आज
वगर्ना सुब्ह का भूला तो घर चला जाता
मिरा मकाँ मिरी ग़फ़लत से बच गया वर्ना
कोई चुरा के मिरे बाम-ओ-दर चला जाता
अगर मैं खिड़कियाँ दरवाज़े बंद कर लेता
तो घर का भेद सर-ए-रहगुज़र चला जाता
थकन बहुत थी मगर साया-ए-शजर में 'जमाल'
मैं बैठता तो मिरा हम-सफ़र चला जाता
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