किसी भी तरह नहीं तुम को भूलने का है

By shakeel-azmiFebruary 29, 2024
किसी भी तरह नहीं तुम को भूलने का है
ज़रा सा दिल है मगर कितना बे-कहे का है
वो लहर आती है जाती है एक लम्हे में
फिर उस के बा'द है जो कुछ वो सोचने का है


बचाने वाला भी कोई नहीं किनारे पर
नदी के साथ यही वक़्त डूबने का है
तुम्हारी आँखों में ठहरा हुआ है जो मंज़र
नया नहीं है मगर फिर भी देखने का है


बहुत क़रीब से हर बार देखता हूँ उसे
मगर सवाल वही थोड़े फ़ासले का है
गुज़िश्ता रात ज़रा सा जो हम में बाक़ी था
यहीं कहीं पे वो रिश्ता भी टूटने का है


बहुत सँभल के न चलिए कि हादसा ही न हो
'शकील' गिरना भी दस्तूर रास्ते का है
27707 viewsghazalHindi