किसी के हिज्र के साए में आ खड़ा हूँ मैं
By aamir-ataFebruary 25, 2024
किसी के हिज्र के साए में आ खड़ा हूँ मैं
'अजीब दुख है मिरा छाँव में जला हूँ मैं
अभी तो साँस है बाक़ी ज़रा बचा हूँ मैं
वो कब तलक नहीं आएगा देखता हूँ मैं
मैं सर पे गठरी ग़मों की उठाए फिरता हूँ
अब अहल-ए-'इल्म कहेंगे कि सर-फिरा हूँ मैं
बस इस लिए कि तिरा हौसला न माँद पड़े
बस इस लिए ही तो कहता हूँ अब नया हूँ मैं
बस इस लिए कि मुझे कह के सोचना न पड़े
हमेशा सोच-समझ कर ही बोलता हूँ मैं
अब इस से क़ब्ल त'आरुफ़ मैं अपना पेश करूँ
हरीफ़ पहले बता देते हैं 'अता' हूँ मैं
'अजीब दुख है मिरा छाँव में जला हूँ मैं
अभी तो साँस है बाक़ी ज़रा बचा हूँ मैं
वो कब तलक नहीं आएगा देखता हूँ मैं
मैं सर पे गठरी ग़मों की उठाए फिरता हूँ
अब अहल-ए-'इल्म कहेंगे कि सर-फिरा हूँ मैं
बस इस लिए कि तिरा हौसला न माँद पड़े
बस इस लिए ही तो कहता हूँ अब नया हूँ मैं
बस इस लिए कि मुझे कह के सोचना न पड़े
हमेशा सोच-समझ कर ही बोलता हूँ मैं
अब इस से क़ब्ल त'आरुफ़ मैं अपना पेश करूँ
हरीफ़ पहले बता देते हैं 'अता' हूँ मैं
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