किसी को वस्ल में उल्फ़त का सागर मार देता है

By umar-alamMarch 1, 2024
किसी को वस्ल में उल्फ़त का सागर मार देता है
किसी को हिज्र में यादों का लश्कर मार देता है
बड़ी मुश्किल से ग़ज़लों में सितम उस के सुनाता हूँ
मगर फिर आप लोगों का मुकर्रर मार देता है


मोहब्बत कर तो लूँगा मैं किसी से भी मगर यारो
कोई महबूब ऐसा है जो यकसर मार देता है
मैं जब भी भेजता हूँ ख़त पहुँचता ही नहीं उस तक
न-जाने कौन रस्ते में कबूतर मार देता है


मैं अपने वस्ल की यादों पे जी लेता मगर जानाँ
मुझे हर पल जुदाई का वो मंज़र मार देता है
ज़माने से तो लड़ लेते हैं हम ता-'उम्र पर 'आलम'
मिरे जैसों को अक्सर ये मुक़द्दर मार देता है


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