किसी सुब्ह का था मंज़र सभी काम जा रहे थे
By sajid-raheemFebruary 28, 2024
किसी सुब्ह का था मंज़र सभी काम जा रहे थे
बड़े शौक़ से परिंदे तह-ए-दाम जा रहे थे
वो जुदा हुआ था जिस पल नहीं भूलता वो मंज़र
मैं वहीं खड़ा हुआ था दर-ओ-बाम जा रहे थे
मुझे कुछ बुरा नहीं था तिरा बाज़ुओं में रहना
मिरे काम थे ज़रूरी मिरे काम जा रहे थे
तिरे शौक़ की हवा ने दिए ज़िंदगी को मा'ने
मिरे रोज़-ओ-शब तो वर्ना बड़े 'आम जा रहे थे
मैं जो बात सोचता था तिरी ज़ात से जुड़ी थी
मैं जो हर्फ़ लिख रहा था तिरे नाम जा रहे थे
बड़े शौक़ से परिंदे तह-ए-दाम जा रहे थे
वो जुदा हुआ था जिस पल नहीं भूलता वो मंज़र
मैं वहीं खड़ा हुआ था दर-ओ-बाम जा रहे थे
मुझे कुछ बुरा नहीं था तिरा बाज़ुओं में रहना
मिरे काम थे ज़रूरी मिरे काम जा रहे थे
तिरे शौक़ की हवा ने दिए ज़िंदगी को मा'ने
मिरे रोज़-ओ-शब तो वर्ना बड़े 'आम जा रहे थे
मैं जो बात सोचता था तिरी ज़ात से जुड़ी थी
मैं जो हर्फ़ लिख रहा था तिरे नाम जा रहे थे
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