कोई अरमान ही नहीं पाया
By aamir-azherOctober 4, 2024
कोई अरमान ही नहीं पाया
दिल परेशान ही नहीं पाया
ख़त्म होने लगे मिरे कर्तब
उन को हैरान ही नहीं पाया
सब की आँखें ख़रीद लीं उस ने
कोई पहचान ही नहीं पाया
ज़िंदगी तुझ को कितनी जल्दी थी
मैं तुझे जान ही नहीं पाया
कल मैं बैठा था कैसे लोगों में
ख़ुद को पहचान ही नहीं पाया
चादरों में लिपट गया वो शहर
चादरें तान ही नहीं पाया
मुझ को मज़लूम क्या समझते वो
मुझ को इंसान ही नहीं पाया
दिल परेशान ही नहीं पाया
ख़त्म होने लगे मिरे कर्तब
उन को हैरान ही नहीं पाया
सब की आँखें ख़रीद लीं उस ने
कोई पहचान ही नहीं पाया
ज़िंदगी तुझ को कितनी जल्दी थी
मैं तुझे जान ही नहीं पाया
कल मैं बैठा था कैसे लोगों में
ख़ुद को पहचान ही नहीं पाया
चादरों में लिपट गया वो शहर
चादरें तान ही नहीं पाया
मुझ को मज़लूम क्या समझते वो
मुझ को इंसान ही नहीं पाया
75123 viewsghazal • Hindi