कोई भी शक्ल हो या नाम कोई याद न था
By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
कोई भी शक्ल हो या नाम कोई याद न था
'अजीब शाम थी उस शाम कोई याद न था
जिन्हें पलटने की फ़ुर्सत नहीं रही वो लोग
घरों से निकले थे तो काम कोई याद न था
सितारा-ए-सफ़र अपने बिछड़ने वालों को
पुकारता रहा गो नाम कोई याद न था
तिरी गली ही नहीं तेरे शह्र तक को भी
हम ऐसा साहिब-ए-आराम कोई याद न था
मता’-ए-उम्र हुई ख़र्च और बताते हुए
न वो दरीचा न वो बाम कोई याद न था
'अजीब शाम थी उस शाम कोई याद न था
जिन्हें पलटने की फ़ुर्सत नहीं रही वो लोग
घरों से निकले थे तो काम कोई याद न था
सितारा-ए-सफ़र अपने बिछड़ने वालों को
पुकारता रहा गो नाम कोई याद न था
तिरी गली ही नहीं तेरे शह्र तक को भी
हम ऐसा साहिब-ए-आराम कोई याद न था
मता’-ए-उम्र हुई ख़र्च और बताते हुए
न वो दरीचा न वो बाम कोई याद न था
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