कोई ख़बर भी न भेजी बहार ने आते

By ada-jafareyMay 21, 2024
कोई ख़बर भी न भेजी बहार ने आते
कि हम भी क़िस्मत-ए-मिज़्गाँ सँवारने आते
फिर आरज़ू से तक़ाज़ा-ए-रस्म-ओ-रह होता
निगह पे क़र्ज़ थे जितने उतारने आते


ये ज़िंदगी है हर इक पैरहन में सजती है
नहीं थी जीत नसीबों में हारने आते
कोई शरर कोई ख़ुश्बू कि दिल न बुझ जाए
किसी भी नाम से ख़ुद को पुकारने आते


अभी यहाँ तो नहीं हो सकी हिकायत-ए-जाँ
नए वरक़ पे नए नक़्श उभारने आते
कभी ग़ुबार कभी नक़्श-पा-ए-राह-रवाँ
वो रहगुज़र थी कि हर रूप धारने आते


मिरा सुकूँ भी मिरे आँसुओं के बस में था
ये मेहमाँ मेरी दुनिया निखारने आते
जो हम नहीं तो सर-ए-रहगुज़ार-ए-दर्द 'अदा'
वो कौन थे जो दिल-ओ-जाँ को वारने आते


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