कोई ख़ुश था तो कोई रो रहा था
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
कोई ख़ुश था तो कोई रो रहा था
जुदा होने का अपना ही मज़ा था
नज़र की एहतियातें काम आईं
वो मेरा देखना तक देखता था
सितम ये था कि मैं उस का बदल भी
उसी से मिलता-जुलता ढूँढता था
वही रफ़्तार थी क़दमों की लेकिन
वो अब मेरे मुख़ालिफ़ चल रहा था
लबों तक हाल-ए-दिल वो भी न लाया
मिरी क़द्रों को वो पहचानता था
जुदा होने का अपना ही मज़ा था
नज़र की एहतियातें काम आईं
वो मेरा देखना तक देखता था
सितम ये था कि मैं उस का बदल भी
उसी से मिलता-जुलता ढूँढता था
वही रफ़्तार थी क़दमों की लेकिन
वो अब मेरे मुख़ालिफ़ चल रहा था
लबों तक हाल-ए-दिल वो भी न लाया
मिरी क़द्रों को वो पहचानता था
98830 viewsghazal • Hindi