कोई निगाह-ए-परेशाँ मिरी तलाश में है

By bhagwan-khilnani-saqiFebruary 26, 2024
कोई निगाह-ए-परेशाँ मिरी तलाश में है
ग़म-ए-हयात का सामाँ मिरी तलाश में है
मैं अपने आप पे शैदा हुआ हूँ जिस दिन से
तभी से हुस्न-ए-निगाराँ मिरी तलाश में है


मुझे तो वास्ता कोई नहीं है दुनिया से
न जाने फिर भी क्यों इंसाँ मिरी तलाश में है
जो अपने आप को अब तक तलाश कर न सका
सुना है मैं ने वो नादाँ मिरी तलाश में है


किसी हसीं ने सुनाई है जब से मेरी ग़ज़ल
तभी से महफ़िल-ए-याराँ मिरी तलाश में है
मरीज़-ए-इश्क़ हूँ और हुस्न है दवा मेरी
मिरे ही दर्द का दरमाँ मिरी तलाश में है


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